Introduction to Journal (जर्नल का परिचय) –
जर्नल व्यापारियों की Primary Book है, इसे हिन्दी मे ‘रोजनामचा’ कहते हैं। इसमें सभी व्यावसायिक transactions की Entry दोहरा लेखा प्रणाली (Double Entry System) के principles के according date wise सही sequence में लिखी जाती है। जब भी कोई transaction होता है तो उसे सबसे पहले इसी जर्नल(Journal) में ही record किया जाता है, इसे record करने का भी एक system होता है,और जैसे-जैसे transactions होते रहते हैं उसी तरह इसे record करते जाते हैं।
अब ये record कैसे करते हैं? इसके भी कुछ rules होते हैं जिनके basis पर उन लेन-देनों को record किया जाता है, यानी किसे डेबिट(Debit) करना है और किसे क्रेडिट(Credit) करना है यह सब rules के according ही किये जाते हैं।
Definition of Journal (जर्नल की परिभाषा)-
“ The book in which all the business transactions are entered systematically for the first time is known as ‘Journal’. The process of recording transactions in a Journal is called ‘Journalising’ “
(जिस book में business के transactions को सबसे पहले और एक systematic तरीके से लिखा जाता है, उसे Journal कहते हैं। journal में transactions के लिखने की जो process होती है उसे ‘Journalising’ कहते हैं।)
जब business छोटा होता है तो यह सम्भव होता है कि प्रत्येक लेन-देनों को Journal में ही record कर लिया जाता है,पर यही business जब बड़ा हो जाता है और उसमें ज़्यादा लेन-देन होने लगते हैं तो यह possible ही नहीं है कि सभी लेन-देनों को Journal में record किया जाए, तो इसके लिए Journal को Sub-Journals में बाँट दिया जाता है जिसे सहायक पुस्तक (Subsidiary Books) या “books of original entry” भी कहते हैं।
Format of Journal (जर्नल का प्रारूप)-
Journal में पाँच Columns होते हैं –
- तिथि(Date) :-
यह Journal का पहला column होता है,जिसमें जिस date में transactions हो रहे हैं उस date को लिखा जाता है।सबसे ऊपर year लिखते हैं फिर month और फिर transaction की तारीख लिखी जाती है। Date और Month एक sequence में और ठीक से लिखे जाने चाहिए।
- विवरण(Particulars) :-
यह बहोत ही important column होता है, इसमे transactions की detail दी जाती है क्योंकि हर एक transaction से दो Account affect होते हैं, जिसमें एक Account को Debit किया जाता है और दूसरे को Credit, पर यह ध्यान रखें कि जिस Account को Debit करना है वह हमेशा पहली Line में ही लिखा जाता है, और इसके आगे ‘Dr.’ Word लिखा जाता है, और दूसरे Account को Credit किया जाता है जिसे दूसरी Line में थोड़ा सा space देकर शुरू किया जाता है, और इसके पहले ‘To’ Word का use किया जाता है। इस तरह हर एक entry करने के बाद उसे short में explain करके clear भी कर दिया जाता है, जिससे future में इसका पता चल सके कि यह entry क्यों Debit या Credit की गयी है, और इस short में explain करने को हम ‘Narration’ कहते हैं।
- खाता संख्या (Ledger Folio Number) :-
Journal का तीसरा column Ledger Folio का होता है।यह column बाकी के column से बहोत छोटा बनाया जाता है, और इसे short में ‘L.F.’ के नाम से भी लिखा जाता है। Journal में जब सारी entries कर ली जाती है तो इसके बाद इसकी posting Ledger में की जाती है।इस column में उस page number को लिखा जाता है जहाँ पर उस particular account की Ledger Posting की गई है। For example – अगर हम Furniture A/c में कोई posting करते हैं जिसका Ledger prepare किया गया है जो page-25 पर है, तो हम Journal में Furniture A/c के आगे L.F. के column में 25 लिख देंगे।
- राशि (Amount Debit) :-
इस चौथे column में amount लिखा जाता है, जिसमें बस Debit की जाने वाली ही amount लिखी जाती है। इसमें इस बात का ध्यान रखा जाता है कि जिस Account को Debit किया जा रहा है उसकी amount Debit वाली entry के सामने ही लिखी जाये।
- राशि (Amount Credit) :-
इस पाँचवे कॉलम में Credit की जाने वाली amount लिखी जाती है, इसमें जिस Account को Credit किया जाता है, उसकी amount Credit की जाने वाली entry के सामने ही लिखी जाती है।
इस प्रकार Journal Entries इस तरह से की जाती हैं ताकि यह clear हो जाये कि कौन-सा Account Debit और कौन-सा Account Credit किया गया है, क्योंकि इसी के basis पर फिर आगे Accounts Book में तरह-तरह के Accounts prepare किये जाते हैं यानी Ledger Posting की जाती है।
आज की इस पोस्ट में मैंने आपको ये बताया कि – Journal किसे कहते हैं ? और इसको कैसे बनाया जाता है? तो उम्मीद करता हूँ आपको समझ में आया होगा, अगर ये आपको पसन्द आया तो इसे social media पर अपने दोस्तों के साथ ज़रूर share करें, जिससे उनको भी इसकी जानकारी मिल सके।
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